Kavita Jha

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आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022

भाग -२५


रात भर सिद्धार्थ की बाहों को सिरहाना बना सोती रही साधना की नींद जब अलार्म से खुली मन में बहुत से विचार आते रहे रात को सिद्धार्थ ने उसके साथ कुछ किया तो नहीं। सिद्धार्थ से बात कर उसे महसूस हुआ कि वो भी बहुत दर्द में जी रहा है।

 अपने परिवार वालों से दुखी अपने पिता के पुराने टूटे फ़ूटे मकान में रहता है। सुबह जब बिस्तर के नीचे टूटे खपरे देखें तो साफ करना चाहा फिर सिद्धार्थ ने चाभी बाहर रख देगा बताया जिससे वो दिन में कभी भी आकर साफ सफाई कर ले वैसे तो वो रोज ही स्कूल से आने के बाद अपना कमरा खुद ही साफ करता था। 

गतांक से आगे..

साधना साड़ी का पल्लू सिर पर रखकर बाहर निकल इधर उधर देखने लगी।उसे सब अजीब सा लग रहा था। सामने ही कुआंँ था और वहांँ बहुत सारे लोग जमा थे।कोई वही खुले में नहा रहा था ,कोई कपड़े धो रहा था तो कई औरतें बर्तन मांँज रही थी और कोई अपने बच्चों को नहा रही थी। 

मौसम बहुत सुहाना लग रहा था।ठंडी हवा चल रही थी।
सर्दी की कड़कड़ाती ठंड में इतनी सुबह इतनी हलचल होगी इसका उसे अंदाजा नहीं था। ठंड से उसके हाथ पैर कांप रहे थे।वो थोड़ी देर वहीं खड़ी रही और कभी दांए देखती तो कभी बांए।रात को किस रास्ते से आई थी उसे याद ही नहीं आ रहा था।

सिद्धार्थ तब तक कपड़े पहन कर तैयार हो गया था।
"अरे! क्या हुआ?आप यहीं खड़ी हैं तब से। आप तो काँप रहीं हैं। लीजिए अपनी शॉल आप यहीं भूल गई।"

साधना ने सिद्धार्थ के हाथ से शॉल लेकर लपेटते हुए कहा," कहाँ से आई थी रात को पता ही नहीं चल रहा है? बस वही याद करने की कोशिश कर रही हूँ।"

"भूल भुलैया है हमारा घर और यहांँ के सभी रिश्ते आप तो यहांं बुरी तरह  फंस गई हैंं।
 चलिए मैं एक मिनट रुकिए में ही बस निकल ही रहा हूँ। आपको अपनी माँ के हवाले करके ही जाऊंँगा काम पर।"

सिद्धार्थ ने कमरे के एक कोने पर रखी टेबल से एक कटोरी में रखे चने एक मुट्ठी निकाल कर खा लिए और अपना पुराना स्कूटर जो कमरे एक तरफ ही रखा था  निकाल कर कमरे का दरवाजा बंद किया और साधना से कहा,"चलिए आप को छोड़ दूंँ।चाय बनी होगी तो पी लूंगा।"

साधना ने एक नजर उस पुराने स्कूटर पर डाली और एक नजर सिद्धार्थ पर। 
"आप तो आदि काल के वाहन का प्रयोग करते हैं ।"

"अरे नहीं! ये मेरे पिताजी का स्कूटर है।इसी पर बिठा कर  हमें वो अपने साथ स्कूल ले जाते थे।" सिद्धार्थ स्कूटर की गद्दी पर हाथ ऐसे सहला रहा था जैसे अपने पिता का स्पर्श पा रहा हो।

"आप तो बहुत भावुक इंसान हैं। पिता की हर चीज को बहुत संभाल कर रखा है।"

"हांँ बस यादों के सहारे ही जीता हूंँ। चलिए अब बात में मत लगाइए, मुझे देर हो रही है।"

क्रमशः

कविता झा'काव्या कवि'
#ले

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1 Comments

नंदिता राय

01-Oct-2022 09:30 PM

Nice

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